परंपरागत मिट्टी की प्रतिमाएं और उनका पर्यावरणीय महत्व

गणेश चतुर्थी का त्योहार आने वाला है और इसके साथ ही मौसम में बदलाव देखने को मिलेगा। बारिश के बादल जल्द ही अपने घरों को लौटेंगे, सुबह की धूप थोड़ी देर से आएगी और शाम को अंधेरा जल्दी छाने लगेगा। यह मौसम का बदलाव नई उमंगों और खुशहाली की शुरुआत का संकेत है।

सनातन मान्यताओं के अनुसार, प्रत्येक शुभ कार्य की शुरुआत गणेश चतुर्थी से होती है, क्योंकि गजानन गणपति की आराधना अनिवार्य है। इस संदर्भ में, प्रधानमंत्री ने ‘मन की बात’ में अपील की थी कि देव प्रतिमाएं प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) की बजाय मिट्टी से बनाई जाएं। तेलंगाना, महाराष्ट्र और राजस्थान की सरकारों ने भी ऐसे आदेश जारी किए हैं।

फिर भी, दिल्ली के नोएडा से अक्षरधाम जाने वाले रास्ते पर और देश के कई अन्य शहरों में अभी भी पीओपी की प्रतिमाएं धड़ल्ले से बनाई और बेची जा रही हैं। यह स्थिति केवल गणेश चतुर्थी तक ही सीमित नहीं है, बल्कि दुर्गा पूजा, नवरात्रि, विश्वकर्मा पूजा, दीपावली और होली जैसे त्योहारों तक इस तरह की परंपराएं जारी रहती हैं, जो भारत की सांस्कृतिक समृद्धि का हिस्सा हैं।

गणेश चतुर्थी पर हमें इस बार पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए सजग और जिम्मेदार तरीके से त्योहार मनाने की आवश्यकता है।

Ganesh

Ganesh Chaturthi 2024: प्लास्टर ऑफ पेरिस और पर्यावरण पर इसके प्रभाव

गणेश चतुर्थी और अन्य त्योहारों के दौरान देशभर में हर साल 10 लाख से अधिक प्रतिमाएं बनाई जाती हैं, जिनमें से 90 फीसदी प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) से बनाई जाती हैं। इन प्रतिमाओं के विसर्जन के बाद, ताल-तलैया, नदियों और समुद्रों में कई सौ टन पीओपी, रासायनिक रंग और पूजा सामग्री जमा हो जाती है।

पीओपी, कैल्शियम सल्फेट हेमी हाइड्रेट से बना होता है और जल में नहीं घुलता। इसके साथ रंग भी विषैले होते हैं, जो पानी की Biological Oxygen Demand (BOD) को तेजी से घटा देते हैं, जिससे जलजन्य जीवों के लिए खतरा पैदा होता है।

इस स्थिति को सुधारने के लिए, हमें प्राकृतिक और इको-फ्रेंडली विकल्पों को अपनाने की आवश्यकता है, ताकि हम गणेश चतुर्थी को पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता के साथ मनाएं और अपने जलस्रोतों की रक्षा कर सकें।

Ganesh Chaturthi 2024: परंपरागत मिट्टी की प्रतिमाएं और उनका पर्यावरणीय महत्व

मानसून के दौरान नदियों के साथ बहुत सारी मिट्टी बहकर आती है—चिकनी, पीली, काली या लाल। पारंपरिक रूप से, कुम्हार नदी और सरिताओं के तट से चिकनी और महीन मिट्टी लेकर प्रतिमा बनाते थे। पूजा के बाद, इन प्रतिमाओं को जल में विसर्जित किया जाता था, साथ ही अन्न और फल भी विसर्जित किए जाते थे, जो जल में रहने वाले जीवों के लिए भोजन का काम करते थे।

इस परंपरा ने न केवल धार्मिक महत्व को बनाए रखा, बल्कि पर्यावरण के प्रति भी एक सम्मान का संकेत था। इससे जलस्रोतों में कोई प्रदूषण नहीं होता था और जल-चर जीवों को भी पोषण मिलता था।

“May Lord Ganesha remove all obstacles from your path and bless you with success and prosperity.

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